Wednesday, March 31, 2010

हुजूर आपका भी एहतिराम करता चलूं

जगजित सिंग की गायी हुई ये गज़ल मेरे पसंदीदा गज़लोंमें से एक हैं।

हुजूर आपका भी एहतिराम करता चलूं
इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूं

निगाह-ओ-दिल की यही आखिरी तमन्न थी
तुम्हारी जुल्फ़ के साये में शाम करता चलूं

उन्हें ये जिद के मुझे देखकर किसीको न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूं

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं

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