जगजित सिंग की गायी हुई ये गज़ल मेरे पसंदीदा गज़लोंमें से एक हैं।
हुजूर आपका भी एहतिराम करता चलूं
इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूं
निगाह-ओ-दिल की यही आखिरी तमन्न थी
तुम्हारी जुल्फ़ के साये में शाम करता चलूं
उन्हें ये जिद के मुझे देखकर किसीको न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूं
ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं
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